खेलो का अपना ही महत्व हैं। खेल-कूद से आतंरिक स्फूर्ति आती है और बच्चों में कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। जब बच्चे खेलते है तो उनका विकास भी सही गति से होता है। खेल-कूद ना करने वाले बच्चे अपने उम्र के हिसाब से काफी मोटे और आलसी हो जाते है। और ऐसा मोटापा किसी भी व्यक्ति के लिए ठीक नहीं होता। खेल-कूद बहुत जरुरी है।

खेल-कूद से बच्चों के शरीर के अंग काफी सक्रीय और लचीले रहते हैं। इससे उन्हें समय से भूख लगती है और अच्छी नींद भी आती है। इससे वे समय से सारे कार्य निपटा सकते है। पर्याप्त खेलकूद का न पाने वाले बच्चों में हड्डियों की कमज़ोरी और दर्द की शिकायत देखी जाती है। पर्याप्त खेल-कूद बच्चों की माशपेशियों और रक्तसंचालन को दुरुस्त बनाये रखता है।

 खेल-कूद से बच्चों का मानसिक विकास भी तेज़ गति से होता है। खेल में व्यस्त रहकर वे तनाव से दूर रहते है। हमेशा होम वर्क व परीक्षा का प्रेशर बच्चों के मानसिक स्वास्थ के लिए ठीक नहीं होता। इससे वे अवसादग्रस्त हो सकते है। खेल-कूद में भाग लेने वाले बच्चे स्फूर्तिजनक  होते हैं। उनकी दिमागी ताज़गी ज़्यादा अच्छी होती है। पढ़ने-लिखने की क्षमता ज़्यादा होती है। पर आजकल के फेसबुक और व्हाट्सप्प ने हमारे बच्चों से उनका खेल-कूद का समय ही छीन लिया है। बच्चे आजकल खेल के मैदानों में कम, मोबाइल के गेम सेक्शंस में ज़्यादा नज़र आते है।

 खेल-कूद से सामाजिक संसर्ग भी मज़बूत होता है। खेल का मैदान एक ऐसी जगह होती है जहां हर वर्ग के बच्चे खेलने आते है। खेल का मैदान एक ऐसी जगह होती है जहां वर्ग के बच्चे खेलने आते है। सबसे मिलजुल कर खेलने वाले बच्चे समाज को बेहतर समझते है। वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित करते है। खेलकूद के दौरान भी बच्चे अपने स्कूल की तरह अपने मित्र बनाते है। वैसे भी बच्चों के लिए उनकी उम्र के बच्चों के साथ नियमित समय गुज़ारना भी उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। बच्चे एक दूसरे से काफी कुछ सीखते है।

 बच्चों के लिए उनका खेलने का समय निश्चित रूप से निर्धारित होना चाहिए। जब भी बच्चे स्कूल आये, तो लौटने के बाद शाम को उन्हें डेढ़ से दो घंटे खेलने का समय जरूर दे। गर्मियों की छुटियों में पढ़ाई के साथ-साथ उनके खेल पर भी उपयुक्त ध्यान दें। बच्चों को घर पे बैठकर लूडो या मोबाइल पर खेलने ना दे। बच्चों के खेलने का अर्थ व्यायाम से ही है।

माता-पिता ये भी ध्यान रखें की बच्चों के लिए सिर्फ कॉपी और किताब ही उनकी विकास का जरिया नहीं हैं। दिमागी और शारीरिक सामजस्यता बनाये रखने के लिए खेलना भी बहुत ज़रूरी है।

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